भस्मासुर तपस्या करके.....
भस्मासुर तपस्या करके, शिव को ही डराता हैं।
दशानन भी तपस्या करके, शिव पर्वत हिलाता है।।
जब तपस्या अंजिनी करते, जगत के कष्ट हैं हरते।
जिन्हें परमार्थ भाता है, वही जग को सुहाता है।।
तपस्या भागीरथ की देख, गंगा स्वर्ग से आयी।
बिना वह भेद भावों के, सभी को तारती आयी।।
मगर इंसान की फितरत, भी कैसी हो गयी देखो।
पतित वह पावनी गंगा, प्रदूषित हो अब पछतायी।।
तपस्या देव करते हैं, और दानव भी तो करते हैं।
दोनों वरदान पाकर के, जगत में राज करते हैं।।
असुर वरदान पाकर के, स्वार्थ में लिप्त हो जाते।
देव परमार्थ करके ही, जगत के कष्ट हरते है।।
देव वरदान पाते हैं, धरा के कष्ट हरते हैं।
असुर वरदान पाता है, जगत में कष्ट बढ़ते हैं।।
यही तो दोनों में अन्तर, रहा है उस जमाने से।
तभी तो देवताओं का, सभी आराध्य करते हैं।।
कुलों में जन्म लेकर के, नहीं इस लोक में पुजते।
धरा में कर्मों के बल पर, जमाने में सदा पुजते।।
ब्रम्ह कुल में हुआ रावण, राम के आगे है हारा।
असुर कुल में जना है बलि, घरों में आज भी पुजते।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’