समय चक्र के सामने.....
बचपन में माँ बाप के, बच्चे ही गलहार।
समय चक्र के सामने, वह होते लाचार ।।
समय अगर प्रतिकूल हो, मात पिता हों साथ ।
बिगड़े कारज सब बनें, छोड़ें कभी न हाथ ।।
जीवन का यह सत्य है, संग न जाता साथ।
आना जाना है लगा, होते सभी अनाथ।।
मन में होता दुख बहुत, दिल रोता दिन रात ।
आँखों का जल सूखकर, दे जाता आघात ।।
जीवन का दर्शन यही, हँसी खुशी सब साथ ।
जब तक हैं संसार में, जियो उठाकर माथ ।।
पत्तों जैसा काँपता , जर्जर हुआ शरीर ।
धन दौलत किस काम की, वय की मिटें लकीर ।।
जीवन भर जोड़ा बहुत, जिनके खातिर आज ।
वही खड़े मुँह फेर कर, लगते हैं नाराज ।।
छोटे हो छोटे रहो, रखो बड़ों का मान ।
बड़े तभी तो आपको, उचित करें सम्मान ।।
दिल को रखें सहेज कर, धड़कन तन की जान ।
अगर कहीं यह थम गयी, तब जीवन बेजान।।
परदुख में कातर बनो, सुख बाँटो कुछ अंश।
प्रेम डगर में तुम चलो, हे मानव के वंश ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’