चरित्र गिरा है इस कदर.....
द्वापर के श्री कृष्ण ने, रचा विश्व इतिहास।
गीता में उपदेश दे, फैला दिया उजास।।
सांदीपनि के ज्ञान से, पाया प्रखर प्रकाश।
जिनके आगे नत हुए, पृथ्वी औ आकाश।
कलयुग में पैदा हुये, बदले रूप सियार।
जो कुहराम मचा रहे, भारत में इस बार।।
जेएनयू से दक्ष हो, निकले हैं कुछ लाल।
अति आजादी माँगते, बने देश के काल।।
पढ़ा रहे हैं देश को, राष्ट्र भक्ति का पाठ।
विद्या की अर्थी सजा, चढ़ें अश्व के काठ।।
समझाते हैं देश को, जैसे पीकर भाँग।
लोकतंत्र से कर रहे, आजादी की माँग।।
राष्ट्रभक्त अफजल गुरू, महिषासुर भगवान।
नक्सलवादी सोच पर, ये पूरे कुरबान।।
लोकतंत्र के भवन पर, चोट करें दिन रात।
संसद पर हमला करें, कहें उचित है बात।।
न्याय व्यवस्था ने दिया, सोच समझ कर दंड।
अपराधी को पूजकर, खुद बनते उद्दंड।।
महिमा मंडित कर रहे, आतंकी अपराध।
बरसी उनकी ये करें, पुरखों जैसा श्रृाद्ध।।
कुछ नेता सँग मीडिया, पीठ ठोंकते रोज।
बेसुर राग अलापतेे, निज स्वारथ की खोज।।
कुबड़े कुनबे मिल गये़े, उनके सँग में आज।
समय सुनहरा देखकर, खुजा रहे हैं खाज।।
गिरे आचरण इस कदर, जिसका नहीं हिसाब।
बचा नहीं पाए अगर, बिखरेंगे हर ख्वाब।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’