जीवन में आलस्य का.....
जीवन में आलस्य का, बढ़ता जाता रोग।
व्यर्थ समय है बीतता, घटे लाभ का योग।।
कार्य पूर्ण होते नहीं, बढ़ता जाता भार।
जनता पिसती है सदा,पड़ती भारी मार।।
गलत राह पर ये चलें, करें देश बदनाम।
जब चाहे हड़ताल से, करते चक्का जाम।।
घर में ही बैठे रहें, करें जतन दिन रात।
अधिकारों की आड़ ले, देते रहते मात।।
नेतागीरी में लगे, खूब मचाते शोर।
कामकाज करते नहीं, निज स्वारथ पर जोर।।
सरकारी हर तंत्र में, ऐसों की भरमार।
कभी मुक्ति इनसे मिले,तब होगा उपकार।।
यही हाल हर घर सखे, मचता बड़ा बवाल।
मूर्तवान आलस्य ही, घर में करें धमाल।।
बैठ घरों में कर रहे, फेमस अपना नाम।
मोबाइल में खो रहे, रोज सुबह औ शाम।।
लाइक औ शेयर करें, मेसेज सुबह शाम।
व्हाटसएप व फेस बुक, चेटिंग में बदनाम।।
खाने में आगे रहें, मुख से छीनें भोग।
काम चोर मस्ती करें, मेहनत करते लोग।।
कर्तव्यों से विमुख हैं, धरे हाथ पर हाथ।
समय बीतने पर यही, सदा पीटते माथ।।
जीवन दर्शन अब यही, छाया है चहुँ ओर।
अगर ग्राफ बढ़ता गया, कैसी होगी भोर।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’