गाँधी के इस देश में.....
गाँधी के इस देश में, बढ़े असीमित चोर।
बुरा समय है आ गया, कैसी होगी भोर।।
अंधकार अब बढ़ रहा, कैसे नाचे मोर।
अपना ही हित चाहते, चोर और चितचोर।।
जिव्हा में सबके लगा, भ्रष्टाचार अचार।
ऊपर नीचे खा रहे, जिससे बढ़ा विकार।।
कुछ तो जी भर खा रहे, आदत से लाचार।
कुछ जेलों में सड़ रहे, कुछ जाने तैयार।।
सब अपने ही लोग हैं, पंगु बनी सरकार।
दीमक सा हैं चुन रहे, कैसे हो उपचार।।
नेता सभी स्वतंत्र हैं, भ्रष्टाचार आबाद।
अपने घर को भर रहे,करें देश बरवाद।।
इनका ही वर्चस्व है, जनता रही कराह।
कष्टों में वह मर रही, उसकी निकले आह।।
रक्तबीज से बढ़ गये, कैसे हो उद्धार ।
दुर्गा माँ अवतार ले, कर इनका संहार।।
आजादी इनसे मिले, आए तभी सुराज।
भारत का गौरव बढ़ेे, तब सबको है नाज।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’