इक नन्हा सा दीपक देखो.....
इक नन्हा सा दीपक देखो,
रोज रात जग जाता है ।
सारे जग का साथी बनकर,
तम को दूर भगाता है ।।
युगों-युगों से खुद जलकर ही ,
संकट हरता आया है।
कर्म मर्म संदेश सभी को,
हँस कर देता आया है।।
हर युग में आँधी तूफाँ ने ,
सदा उसे धमकाया है ।
पर छोटा सा होकर भी वह,
कभीे नहीं घबराया है ।।
अंधकार से लड़ते रहना,
उसकी अमर कहानी है।
देखें कौन हराता जग में,
कौन पिलाता पानी है ।।
बाधायें तो आती रहतीं,
कभी हार न माना है ।
तम गहराया हो कितना भी,
पथ आलौकित जाना है ।।
दीपक का संदेश यही तो,
जग को राह दिखाता है।
संकट की हर घड़ियों में भी,
बढ़ निर्भय बतलाता है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’