याद सुबह से आ रही.....
याद सुबह से आ रही, पापा की मुस्कान ।
कुरते से वह झाँकती, साफ फटी बनियान ।।
घर की चिंता थी उन्हें, पले पढ़े परिवार ।
जीवन अर्पित कर दिया, सेठों के दरबार ।।
सदा बड़प्पन में जिये, रामनाथ ‘श्री नाथ’ ।
छोटे और बड़े सभी, घुल मिल जाते साथ ।।
बेटा था मैं लाड़ला, करते सभी दुलार ।
सभी उठाने गोद में, रहते थे तैयार ।।
दुबला पतला देख कर, चिंता करते तात ।
डाक्टर के आगे सदा, निकले मुख से बात।।
आशाओं की पोटली, था आँखों का नूर ।
बड़ा पुत्र था इसलिये, प्यार मिला भरपूर ।।
मेरे खातिर कोट जब, लाये पहली बार ।
पहन बड़े ही शान से, मैं घूमा बाजार ।।
हाफ पेंट पर कोट का, कैसा था वह मेल ।
पहने स्लीपर पाँव में, धरा वेश अनमेल ।।
गोली बिस्किट खिला कर, प्रेम करें दिन रात।
काँधे पर बैठाल कर, पैरों को दें मात।।
बीते पल कब भूलते, आते हैं सब याद ।
हर छोटी सी बात पर, वो देते थे दाद ।।
कभी हार मत मानना, यह जीवन उपहार।
नेक राह पर तुम चलो, दूर हटेगें भार ।।
जीवन में संदेश तब, पाये थे भरपूर।
हृदयंगम करते बढ़े, तभी बने थे नूर।।
साहित्यकार थे कुशल, ऋषियों जैसा ज्ञान।
मुुझे पिता पर गर्व है, वे मेरी हैं शान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’