कैसे भाषण हो रहे.....
कैसे भाषण हो रहे, नेताओं के आज।
जहर उगलती जीभ है, विषधर सा अंदाज ।।
सत्ता खातिर है मचा, चारों ओर बवाल ।
निज स्वारथ के वास्ते, लड़ने को बेहाल ।।
नेता पैदा हो रहे, बन कर औरंगजेब ।
देश किधर है जा रहा, कैसे हटे फरेब ।।
मर्यादायें तोड़कर, फेंक रहे हैं कीच।
पांडव सारे देखकर, आँख रहे है मीच।।
नैतिकता की दौड़ से, दूर हुआ परिवेश।
जात पाँत की आड़ में, बटा हुआ है देश।।
धर्म लबादा ओढ़कर, धरे अधर्मी वेश।
कानूनों की आड़ में, बदला है गणवेश।।
इन्सानों के भेष में, बन बैठे हैवान ।
खून खराबा कर रहेे, तनमन से शैतान ।।
नहीं छिपे इस देश के, हैं बिगड़े हालात।
लुका छिपी का खेल यह, चलता है दिन रात।।
समय खड़ा है ताक में, करने खूनी खेल।
मानव से इंसान का, कब टूटे यह मेल ।।
बुरा समय है आ रहा, देता है संकेत।
भारत के अब लाड़लो, जागो रहो सचेत।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’