ग्यारह दोहे लिख रहे.....
ग्यारह दोहे लिख रहे, पढ़ो प्रेम से यार।
नया वर्ष मंगल रहे, हो आपस में प्यार।।
लेकर खुशियाँ आ रहा, अब तो है बाईस।
भूलो उस इक्कीस को, ईश्वर का आशीष।।
अवसादों से है घिरा, बीत गया वह साल।
उथल-पुथल भी कर गया, जगत् रहा बेहाल।।
बिल से निकले सर्प भी, डसने को तैयार।
बीन सपेरों ने बजा, डाला कारागार।।
टुकड़े-टुकड़े गैंग ने, खूब मचाई धूम।
ढपली लेकर पिल पड़े, आजादी की बूम।।
सत्ता की चाहत बुरी, गलत हो गई चाल।
हर नाजुक से मोड़ पर, खींच रहे थे खाल।।
घिरे रहे धृतराष्ट्र भी, पुत्र मोह के पाश।
धर्म के रक्षक कृष्ण थे, हुआ अंततह नाश।।
चीर हरण भी हो गया, था दुःशासन हाथ।
शकुनि की हर चालों में, दुर्योधन का साथ।।
एक तरफ पाँडव रहे, कौरव दूजी ओर।
धर्म ध्वजा लेकर चले, किया कृष्ण ने भोर।।
वर्ष वायरस का रहा, दो हजार वह बीस।
लोहा लेने आ गया, देखो फिर इक्कीस।।
विजयी मानव हो गया, जो था संकट काल।
मिली आज वैक्सीन है, होंगे फिर खुशहाल।।
बुझी जिंदगी है हँसी, तन-मन हुआ गुलाब।
चली हवाएँ प्यार की, महका प्रेम शवाब।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’