बिना कर्म के व्यर्थ हैे.....
कुछ खाएँ पूँजी सकल, फिर कहते हे राम ।
कुछ माथे पर लिख रहे, कर्म करो अविराम ।।
विमुख रहे जो कर्म से, सदा भोगते कष्ट ।
कर्म किया जिसने सदा, वही रहे संतुष्ट ।।
साहस कर आगे बढ़ो, चखते सुफल अनेक ।
राह किनारे बैठकर, कौन बना है नेक ।।
पास रहा जो खो गया, चिन्ता है बेकार ।
शेष बचा जो सामने, उसको साज सँवार ।।
कर्मठता श्रम-लगन में, छिपा हुआ है राज ।
इस पथ पर जो भी चला, बनते बिगड़े काज ।।
बढ़ना है संसार में, चलो उठाकर माथ ।
सारी दुनिया आपको, लेगी हाथों-हाथ ।।
कर्मठता इन्सान को, करे शिखर-आसीन ।
जीवन में खुशियाँ तभी, कभी न बनिए दीन।।
विपदाओं के सामने, कभी न मानंे हार ।
श्रम जीवन की संपदा, पहनाए मणिहार ।।
बिना कर्म के व्यर्थ है, इस जग में इंसान ।
गीता की वाणी कहे, कर्म बने पहचान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’