नाते-रिश्तों से बंँधा.....
नाते-रिश्तों से बंँधा, भारत में परिवार।
सामाजिक परिवेश का, है अनुपम संसार।।
मात-पिता की गोद में, ममता की है छाँव।
शिक्षा-दीक्षा सब मिले, संस्कारों की ठाँव।।
जीवन भर तक साथ है, पत्नी का सहयोग ।
सुख-दुख में सहभागिता, विधिना से है योग।।
घर आँगन बचपन हंँसे, समय करे मनुहार।
जन्म -मरण उत्सव सभी, होते हैं गुलजार।
पीढ़ी दर पीढ़ी मिले, यही अनोखा प्यार ।
धर्म-कर्म आराधना, का होता सत्कार।।
त्योहारों की रौनकें, खुशियों के भंडार।
गले मिले हर धर्म के, हर उत्सव त्यौहार।।
बेटी-बेटों से बढ़े, रिश्तों की जब डोर ।
जीवन के हर मोड़ पर, होती है नित भोर।।
संस्कार की ज्योति से, बिखरे जगत प्रकाश।
भारत की माटी कहे, है सबका आकाश।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’