जन मानस का हृदय अब.....
जनमानस का हृदय अब, झेल रहा अपमान।
जन्म भूमि है माँगता, सारा हिन्दुस्तान।।
यह भूमि है राम की, सबको है अभिमान।
कैसे भारत देश में, बाबर का सम्मान।।
राम-कृष्ण की भूमि का, हुआ बुरा़ अंजाम।
सोमनाथ काशी रहे, जैसे कई मुकाम।।
खंडित प्रतिमायें सभी, देख रहीं हैं मूक।
इतिहासों के पृष्ठ में, दर्ज आज भी चूक।।
आजादी सबको मिली, तब रूठे थे आप।
कोप भवन में बैठकर, किया धरा का नाप।।
माँगा हिस्सा आपने, तुमको दिया मकान।
पर तुमने तो गढ़ लिया, कैसा पाकिस्तान।।
सबको हमने मान दे, सहिष्णु बनाया देश।
संविधान में दर्ज कर, दिया नेक संदेश।।
बंधुत्वभाव से सब रहें, निर्मल मन से पाक।
अनुज तुम्हें माना सदा, पर मन से नापाक।।
सिया राम के हो गये, सुन्नी बने नवाब।
प्रश्न आस्था का रहा, उलझें नहीं जनाब।।
सबके मन में हैं रमे, राम रमापति राम।
सुख दुख में सम्बल रहे, ऐसे हैं श्रीराम।।
सब सौहार्द हैं चाहते, कोई नहीं बवाल।
कुछ विनम्र हो जाइये, छोडं़े सभी मलाल।।
भारत ने सब कुछ दिया, तुमको अपना जान।
बड़े भ्रात हैं आपके, कुछ तो रखिये मान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’