सनातन काल से कवि ने.....
सनातन काल से कवि ने, सभी मन को लुभाया है,
प्रकृति के प्रति दया के भाव, को उसने जगाया है।
जगत की वेदना संवेदना, की है रही चिन्ता,
वतन के वास्ते जीना और मरना भी सिखाया है।।
सृजन की धार में बहकर, बना गीतों को गाया है,
नृत्य संगीत की दुनिया को, स्वर देकर सजाया है।
प्रेम और भक्ति की दरिया में, सबको है डुबो डाला,
कृष्ण राधा की जोड़ी को, दिलों में तब बसाया है।
कभी कवि मेघदूतों से, प्रणय संवाद करता है,
कभी बरखा की बूँदों के, लिये मनुहार करता है।
जगत के हर सृजन शिल्पी, से नाता जोड़कर बैठा,
प्रकृति के हर झरोखों से, सदा ही नेह करता है।।
चाँदनी रात को आँगन में, चंदा को बुलाता है,
विरह की वेदना से प्रेमी को, मरहम लगाता है।
उजाले पक्ष की किरणों को, दिल में है संजो जाता,
अमा की घोर रातों में, उसे ढाँढस बंधाता है।।
कवि आल्हा को लिख करके, दिलों में जोश भरता है,
कभी वह चंद-वरदाई बना, संकट को हरता है।
जहाँ रवि जा नहीं सकता, वहाँ वह है पहुँच जाता,
जगत के हर अंधेरे में, वह सूरज बन दमकता है।।
कलम का है सिपाही वह, वतन से प्रेम करता है,
दिलों में राष्ट्रभक्ति का, सभी में जोश भरता है।
देश में छाता संकट जब, सभी को एक जुट रखता,
सिपाही देश का बनकर,हिफाजत सबकी करता है।।
कवि का काम है जगकर, जमाने को जगाना है,
जहाँ फैला है तम घनघोर, सूरज को उगाना है।
विसंगतियाँ जो छायी हैं, वतन को वह बता जाता,
कलम से जागरण का शंख, फिर उसको बजाना है।।
ऋषि मुनियों ने अपने को, ऋचाओं में उकेरा है,
आदि कवियों ने वेदों में, ज्ञान सागर उड़ेला है।
ऋचाओं से बहाया गीत, और संगीत का दरिया,
नृत्य की भंगिमाओं को, स्वयं शिव ने उकेरा है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’