हर मंदिर में है बढ़ी.....
हर मंदिर में है बढ़ी, त्यौहारों की भीर ।
हर्षित पंडे हो गए, बदल रहे तदबीर ।।
धर्मस्थल में हो रहा, बस ऐसा ही खेल ।
ईश्वर के दरबार में, बस पंडों का मेल।।
धन का लालच बढ़ गया, गुमे इरादे नेक ।
सेवाधर्मी वेश में, ठगने लगे अनेक ।।
ट्रस्ट बना कर रख लिया, एक दान का पात्र ।
उसके ऊपर लिख दिया, दे सब बनो सुपात्र।।
भक्त समर्पित हो गए दान मिला भरपूर ।
जब भी खोलें पात्र को, बढ़ा दान दस्तूर ।।
ट्रस्टी बनने में मची, बुरी तरह से होड़ ।
गुत्थम गुत्थी हो रही, या हिलमिल गठजोड़ ।।
आस्था व विश्वास की, भीड़ बढ़ी दिन रात ।
दान चढ़ोत्री पर यही, करते हैं प्रति घात ।।
इस पर अंकुश यदि लगे, सजे ईश दरबार ।
दुखियों के दुख दूर हों, सब पर हो उपकार ।।
धर्म और सत्कर्म का, सदियों से सम्बन्ध।
वैदिक संस्कृति में रहा, इससे ही अनुबंध।।
स्कूल धर्मशाला बने, अस्पताल के काम ।
जनहित के ही क्षेत्र में, जुड़ें अनेकों नाम।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’