हर कवि का कर्तव्य है.....
हर कवि का कर्तव्य है, कुछ न लिखें अनर्थ।
कविता न बदनाम हो, गूढ़ छिपा है अर्थ।।
कविता का जो धर्म है, पहले समझें आप।
मानव का यह ताप हर, दूर करे संताप।।
कविता मानव की सखा, जानें उसका मर्म।
कलम सिपाही है वही, समझे अपना कर्म।।
वेदशास्त्र इसमें लिखे, पद्य-गद्य अनमोल।
भारत के साहित्य में, मानव हित के बोल।।
विसंगतियों का दौर यह,स्वार्थ भाव है आज।
नैतिक मूल्यों को जगा, बदलें सकल समाज।।
परिहासों-चुटकुलों से, क्षण भर का आनंद।
कविता में संदेश हो, दूर करें छल-छन्द।।
कवियों का यह फर्ज है, कविता का यह धर्म।
गलत दिशा में जो चलें , दिखा राह सत्कर्म।।
कीचड़ में खुद न फँसें, सबका रखें खयाल।
मानव हित की सोच से,जग को करें निहाल।।
दरबारी खुद ना बने, उससे करें बचाव।
परहित में जो है लगा, उसका करें चुनाव।।
हर कवि को है चाहिये, करें फर्ज निर्वाह।
न्याय विवेकी ही रहें , यही कलम की चाह।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’