नव संवत्सर आ गया.....
नव संवत्सर आ गया, छाईं खुशियाँ द्वार।
दीपक द्वारे पर रखें, महिमा अपरम्पार।।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।
धरा प्रगति मौसम हवा, सबको करता हर्ष।।
संवत्सर की यह प्रथा, सतयुग से प्रारम्भ।
ब्रह्मा की इस सृष्टि की, गणना का है खंभ।।
नवमी तिथि में अवतरित, अवध पुरी के राम।
रामराज्य है बन गया, आदर्शों का धाम।।
राजतिलक उनका हुआ, शुभ दिन थी नवरात्रि।
राज्य अयोद्धा बन गई, सारे जग की धात्रि।।
मंगलमय नवरात्रि को, बड़ा रहा त्यौहार।
नगर अयोध्या में रहीं, खुशियाँ पारावार।।
नव रात्रि आराधना, मातृ शक्ति का ध्यान ।
ऋद्धि-सिद्धि की चाहना, सबका हो कल्यान ।।
चक्रवर्ती राजा बने, विक्रमादित्य महान ।
सूर्यवंश के राज्य में, रोशन हुआ जहान ।।
बल बुद्धि चातुर्य में, चर्चित थे सम्राट।
शक हूणों औ यवन से, रक्षित था यह राष्ट्र।।
स्वर्ण काल का युग रहा, हिन्दुस्ताँ को नाज।
विक्रम सम्वत् नाम से, गणना का आगाज।।
मना रहे गुड़ि पाड़वा, चेटिचंड-अवतार।
फलाहार-निर्जल रहें, चढ़ें पुष्प के हार।।
भारत का नव वर्ष यह, खुशी भरा है खास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, छाया है मधुमास।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’