सास-ससुर, माता-पिता.....
शहनाई की गूँज सँग, डोली आती द्वार ।
साजन सँग अठखेलियाँ, आँगन मिले दुलार ।।
बाबुल का घर छोड़कर, जब आती ससुराल ।
वधु अपनापन ढूॅँढ़ती, घर-आँगन खुशहाल ।।
बहू अगर बेटी बने, सब रहते खुशहाल ।
दीवारें खिचतीं नहीं, हिलमिल गुजरें साल ।।
सास अगर माता बने, बढ़ जाता है मान ।
जीवन भर सुख शांति से, घर की बढ़ती शान ।।
सास बहू के प्रेम में, छिपा अनोखा का राज ।
रिद्धि सिद्धि समृद्धि का, रहता सिर पर ताज ।।
खुले दिलों से ही मिलें, कहीं न हो खट्टास ।
वातायन जब खुला हो, सुखद शान्ति का वास।।
रिश्तों का यह मेल ही, खुशियों की बरसात ।
दूर हटें संकट सभी, सुख की बिछे बिसात।।
सास-ससुर, माता-पिता, दोनों एक समान ।
कोई भी अन्तर नहीं, कहते वेद पुरान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’