प्रिये आपकी बात को, सुनता हूँ.....
प्रिये आपकी बात को, सुनता हूँ दिन रात ।
नहीं सुनी तुमने कभी, मेरे दिल की बात ।।
बनी जब से घरवाली, नही है सच्ची यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
भावुकता में डूबकर, क्या लिखता दिन रात।
कभी नहीं तुमने कहा, मुझे सुनाओ तात।।
सुनो जी बात हमारी, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
जीवन बीता जा रहा,निमिष निमिष दिन रात।
मनोभाव से दूर हो, तुम बिल्कुल अज्ञात।।
यही क्या लगन हमारी, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
कविता के आकाश में, जब भी भरूँ उड़ान ।
सारी हवा निकाल कर, बन जातीं नादान ।।
मुसीबत आती भारी, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
कविता बचपन में मिली, मिला नेक संसार।
उसको पाकर खुश हुआ, मुझे मिला आधार ।।
मुझे वह बहुत है भाति, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
हर पल रहती साथ में, दिन हो चाहे रात ।
प्रियतम बन मन में बसी, समझे हर जज्बात।।
मुझे वह अतिशय भाती, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
हर कवि की पीड़ा यही,पत्नी रही उदास।
दूजों के दिल में बसें, स्वजनों में न खास।।
बताओ संगी साथी, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
कवि की यह अंतर-व्यथा, चाहे तुलसीदास ।
नाम रहा रत्नावली, जग जाहिर इतिहास ।।
छोड़कर दुनिया दारी, प्रभु से कर ली यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
पत्नी की झिड़की सुनी, छोड़ गये घर द्वार।।
कविता के संग में रहे, दिया विश्व उपहार।
रखो तुम घर की चाबी, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
राम चरित मानस लिखा, अदभुत् सौंपा ग्रंथ ।
जन मानस में छा गये, दिखा गये नव पंथ ।।
बताओ सत्य नहीं क्या, निभेगी कैसे यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
पति-पत्नी का धर्म है, यदि कविता हो साथ।
सहर्ष उसे स्वीकारिये, ऊँचा होगा माथ।।
करेगा हर युग वंदन, बढ़ेगी जग से यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
कविता लिख कर पुज गए, जग में हुये महान ।
युग अभिनंदन कर रहा, लोग करें गुणगान।।
तुम्हारा भी यश होगा, पुजेगी हर युग यारी,
बताओ प्रियवर प्यारी, निभेगी कैसे यारी.....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’