पाखंडी धरने लगे.....
पाखंडी धरने लगेे, साधु संत का रूप।
धर्म ज्ञान वैराग्य को, करने लगे कुरूप।।
भोले भाले भक्त जन, करते हैं विश्वास।
उनकी श्रद्धा भक्ति का, ये करते उपहास।।
आडम्बर फैला रखा, धन पर रखते ध्यान।
बड़ा दान जो दे सके, तब लेते संज्ञान।।
बाह्य रंग को देखकर, फँस जाते यजमान।
पाप पुण्य के फेर में, बस इनका कल्यान।।
धर्म-मर्म से विमुख हैं, तिलक लगाते माथ।
तृप्ति बोध से दूर हैं, नित खुजलाते हाथ।।
चमचों की जयकार से, खुश होते श्री मान।
दया धर्म आता नहीं, मन में है अभिमान।।
मिथ्या ज्ञान बघारते, करें न कुछ उपकार।
नारी को ही ज्ञान दें, पुरूषों को फटकार।।
दूजों कोेे उपदेश दें, धर्म-कर्म के नाम।
खुद के जीवन में सदा, करते उल्टे काम।।
शिक्षित होंगे यदि सभी, नहीं फँसेंगे लोग।
बुद्धिमान ही जगत में, पाते मोहन भोग।।
वेद उपनिषद् में भरा, बृहद् ज्ञान भंडार।
जिसने जीवन में पढ़ा, है उसका उद्धार।।
शिक्षा के उजियार से, ज्ञान बढ़े दिन रात।
शिक्षित मानव ही सदा, तम को देते मात।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’