स्मार्ट सिटी.....
स्मार्ट सिटी स्मार्ट से, बनती है श्री मान।
जागरूक जनता उसे, देती है पहिचान।।
नगर निकायें सुस्त जब, जनता होती त्रस्त।
घर बाहर की स्वच्छता, सभी दिशा में ध्वस्त।।
जनादेश कुछ भी रहे, इनकी पकती दाल।
जन हित के हर काज में, यही खींचते खाल।।
कूड़ा करकट फेंककर, रखा स्वच्छ घर द्वार।
बाहर की किसको फिकर, लगा रखा अम्बार।।
बंद घरों में कर रहे, सभी घिनौने काज।
पीट ढिढोंरा हर गली, सिर पर पहने ताज।।
भ्रष्ट आचरण कर रहे, मानवता को भूल।
यही हमारे देश का, बना हुआ है शूल।।
अधिकारों के वास्ते, लड़ते हैं नित लोग।
कर्तव्यों को भूलकर, चाहें मोहन भोग।।
भ्रष्ट आचरण मुक्ति से, पुख्ता हों हर काम।
कर्तव्यों के प्रति सजग, मिलता तभी मुकाम।।
बढ़ा प्रदूषण कष्टकर, जल थल नभ आकाश।
जीवन मुश्किल में हुआ, वातावरण हताश।।
हरी-भरी वसुधा रहे, गिरि वन सरि तालाब।
पशु पक्षी कलरव करें, झूमे प्रकृति शवाब।।
स्वच्छ रहेगी जब धरा, हरा भरा संसार।
स्वस्थ सभी होंगे मिले, खुशियों का भंडार।।
सबकी हो सहभागिता, निखरेगा तब आर्ट।
सच्चे मन सहयोग दें, तभी सिटी स्मार्ट।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’