राष्ट्रसंघ स्थापना.....
राष्ट्रसंघ स्थापना, सारे जग की आस।
कोई भूखा मत रहे, कोई हो न उदास।।
आपस में सद्भावना, खुलें प्रगति के द्वार।
मानवता खुशहाल हो, क्यों जीना दुश्वार।।
प्रकृति और इस धरा को, कैसे रखें सँभाल।
आपस में मिल बैठ कर, जग को करें निहाल।।
चिन्ता पर्यावरण की,जल थल औ आकाश।
जीवन संकटमय बना, वातावरण हतास।।
हवा प्रदूषित हो रही, मांगे प्रकृति हिसाब।
जंगल सूने हो रहे, दूषित सरि तालाब।।
भूख गरीबी बढ़ रही, और कुपोषण-वार।
धरा कुपित भी हो रही, भाँज रही तलवार।।
छद्म युद्ध से जूझते, कितने सारे देश।
कैसे बदलेगा भला, सुखद शांति परिवेश।।
काले गोरे रंग का, मचा हुआ है भेद।
खून रंग तो लाल है,किसका हुआ सफेद।।
इस्लामिक जेहाद का, माथे लगा कलंक।
जग में चिन्ता है बढ़ी, उग्रवाद आतंक।।
मानवता दर-दर फिरे, दानवता खुशहाल।
परिवर्तन कब आएगा, गूॅँजे आज सवाल।।
विश्वशांति सदभाव का, समय बने अनुकूल।
सहिष्णुभाव चहुँ ओर हो, राग द्वेष न शूल।।
राष्ट्र संघ के सामने, प्रश्न खड़ें हैं मौन।
उत्तर देगा कौन अब, खोजेगा हल कौन।।
सीमाओं पर शांति हो, कभी न हो तकरार।
विश्व शांति की कल्पना, तब होगी साकार।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’