जेएनयू में हो रही, राष्ट्रद्रोह की बात.....
जेएनयू में हो रही, राष्ट्रद्रोह की बात।
लोकतंत्र की नींव पर,नित करते आघात।।
भाग्य विधाता देश के, कहलाते हैं छात्र।
ज्ञान और विज्ञान से, बनते सभी सुपात्र।।
विद्यार्थी ही देश के, प्राणवान सरताज।
इनके बल पर ही बने, शिक्षित सभ्य समाज।।
कुछ विद्यार्थी कर रहे, नित्य घिनौना काम।
विद्या की अर्थी सजा, गुरुकुल को बदनाम।।
विद्यालय गढ़ बन गया, वाम दलों के नाम।
नक्सलवादी द्रोह को, करते यही प्रणाम।।
कालेजों में घुस गये, पहन शेर की खाल।
भ्रमित राष्ट्र को कर रहे, देश भक्त बेहाल।।
अभिव्यक्ति के नाम पर, माँग रहे हैं छूट।
देशभक्ति को भूलकर, मनचाही हर लूट।।
महिषासुर को पूजते, अफजल गुरू की याद।
नैतिकता को छोड़कर, करते हैं संवाद।।
इनको आज लुभा रही, असुरों की हर बात।
दानवता की चाह है, यही बड़ा आघात।।
राजनीति को भा रही, राष्ट्र विरोधी सोच।
अपना उल्लू साधने, देश रहे हैं नोंच।।
नारों की अब आड़ में, बाँट रहे हैं देश।
खतरे में है अस्मिता, पलट रहे परिवेश।।
आजादी अभिव्यक्ति की, चाह रहे जो लोग।
राष्ट्र विखंडन पर अड़े, पागलपन का रोग।।
दिक्भ्रमितों को रोकने, जगा नहीं यह देश।
इनकी सुलगी आग से, झुलसेगा परिवेश।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’