नैतिकता है खो गयी.....
नैतिकता है खो गयी, ढूँढ़ रहे चहुँ ओर।
वापस फिर से आ सके, छू लें नभ का छोर।।
कर्तव्यों से मुँह चुरा, अधिकारों का शोर।
उससे बचकर भागते, कैसा आया दौर।।
स्वार्थ मोह में सब फँसे, फैला जग में जाल।
इससे उबरें हम सभी, तभी हटें जंजाल।।
उँगली अगर दिखा रहे, खुद पर तनतीं तीन।
आशय अगर समझ सके, तब बदलेगा सीन।।
मन में चिन्तन सब करें, आपस में सम्मान।
खुशहाली में सब जियें, जग में बनें महान।।
पंच तत्व अवधारणा, है प्राकृत सौगात।
तन सबको अनुपम मिला,मन फिरता बौरात।।
भौतिकता की दौड़ में, सभी हुयेे बरबाद।
घर विलासिता से भरें, है युग का अवसाद।।
दौड़ लगाने के लिये, मची हुयी है होड़।
संसाधन की चाह में, नैतिकता को छोड़।।
नैतिकता बिकती नहीं, कभी खुले बाजार।
जग में यह अनमोल है, जीवन का आधार।।
सद्गुण के विस्तार सेे, दूर हटेंगे क्लेश।
नैतिकता की शक्ति से, बदलेंगे परिवेश।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’