छल प्रपंच की आड़ ले.....
करुणा जागृत कीजिये, निज मन में श्री मान ।
अहंकार से विमुख मन, करता जग कल्यान ।।
दूर छिटकने जब लगें, सारे अपने लोग ।
तब समझो तुझको लगा, अहंकार का रोग ।।
चित्त ग्लानि से भर उठे, अपने छोड़ें साथ ।
काम न ऐसा कीजिये, झुक जाए यह माथ।।
मन अशांत हो जाय जब, मत घबरायें आप ।
विचलित कभी न होइयेे, करें शांति का जाप ।।
गिर कर उठते जो सदा,नहीं करें परवाह ।
पथ दुरूह फिर भी चलें, मिलती उनको राह ।।
कष्टों में जीवन जिया, मानी कभी न हार ।
सफल वही होते सदा, जीत मिले उपहार ।।
भूत सदा इतिहास है, वर्तमान ही सत्य ।
कौन भविष्यत जानता, काल चक्र का नृत्य ।।
छल प्रपंच की आड़ ले, बना लिया जो गेह ।
जब पंछी उड़ जायगा, पड़ी रहेगी देह ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’