नेताओं ने बो दिये.....
नेताओं ने बो दिये, आरक्षण के बीज।
फसलों को अब काटने, बाँध रहे ताबीज।।
आरक्षण अब बन गया,सबका जी जंजाल।
जिसको देखो माँगता, बुरा हुआ है हाल।।
आरक्षण अब चाहते, अगड़े-पिछड़े लोग।
खुराफात करने लगे, खाने मोहन भोग।।
सक्षम भी अब आ खड़े, बढ़ती जाती भूख।
सरकारी पद चाहतेे, जिससे मिले रसूख।।
लालच फैला इस तरह, माँग करें पुरजोर।
हाथों में डंडा लिये, मचा रहे हैं शोर।।
हिंसक आरक्षण बना, भाँज रहा तलवार।
ज्ञानी दुबका है खड़ा, झेल रहा है वार।।
वोट बैंक सबके खुले, राजनीति में आज।
सत्ता के खातिर सभी, नाच रहे बेताज।।
नेतागण वादे करें, नित फैलाते आग।
देश हितों को भूलकर, गाएँ अपना राग।।
जनता देती टैक्स है, खुद तो बने नवाब।
मुक्त हाथ से बाँटते, जैसे पिये शराब।।
पिछले सत्तर साल से, कितने बने अमीर।
पिछड़े और गरीब सब, फिर भी रहे फकीर।।
यह बैसाखी है बुरी, सभी रहें मुहताज।
शिक्षा दीक्षा मुफ्त हो, किसको है इतराज।।
देश तरक्की पर बढ़े, खाएँगे सब कंद।
समता का अवसर मिले, तो फैले मकरंद।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’