रिश्तों में खट्टास का.....
रिश्तों में खट्टास का, बढ़ता जाता रोग ।
समय अगर बदला नहीं, तो रोएँगे लोग ।।
लोभ मोह में लिप्त हैं , आज सभी इंसान ।
ऊपर बैठा देखता, समदर्शी भगवान ।।
अगला पिछला सब यहीं, करना है भुगतान ।
पुनर्जन्म तक शेष कुछ, नहीं रहेगा जान ।।
जीवन का यह सत्य है, ग्रंथों का है सार ।
जो बोया तुमने सदा, वही काटना यार ।।
संस्कृति कहती है सदा, यह मोती की माल ।
गुथी हुयी जिस डोर से, मत टूटे हर हाल ।।
रिश्तों में बँधकर रहें, हँसी खुशी के साथ ।
बरगद सी छाया मिले, सिर पर होवे हाथ ।।
रिश्ते नाते हैं सदा, खुशियों के भंडार ।
सदियों से हैं रच रहे, उत्सव के संसार ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’