जीवन में सम्मान की.....
जीवन में सम्मान की, सबको रहती चाह।
अगर दाम है जेब में, आसाँ है तब राह।।
सम्मानों का है सजा, मनचाहा बाजार।
छोटा बड़ा मझोल है, बोली लगें हजार।।
हर आयोजक चाहता, लक्ष्मी का वरदान।
सरस्वती को तब मिले, मन चाहा सम्मान।।
संयोजक की चाहना, श्रोता दर्शक मंच।
संसाधन बिन शून्य है, कैसे होगा लंच।।
अतिथि मंच पर बैठते, पहले तो नाराज।
करतल ध्वनि जब गूँजती, मन में बजते साज।।
मंचों पर जो बैठते, संस्थाओं में ज्येष्ठ।
या वरिष्ठ हों आयु में, तो ही होते श्रेष्ठ।।
वक्ता अपने ज्ञान की, घुटी पिलाता घोल।
श्रोता सारे मौन हो, शब्द सुने अनमोल।।
ज्ञानवान होते वही, बोलें मधुमय बोल।
श्रोताओं की दाद से, प्रवचन दें दिल खोल।।
दर्शक श्रोता सामने, लेते हैं आनंद।
आपस में वे तौकबलते, खट्टा मीठा कंद।।
कुछ तो केवल चाहते, अच्छा खासा लंच।
तृप्ति भाव पर ही कहें, अति उत्तम है मंच।।
हम तो बस यह चाहते, ऐसा हो सम्मान।
स्वाभिमान सबका बचे, नैतिकता का मान।।
गुणवानों की कद्र हो, उनका हो गुणगान।
हम तो नहीं है चाहते, बंद करें सम्मान।।
लक्ष्मी माँ कुछ कृपा कर, दे ऐसा वरदान।
राह सुगमता से मिले, सबका हो कल्यान।।
ज्ञानी का सम्मान हो, यही रचें संसार।
स्वागत हो जयकार हो, है उत्तम सुविचार।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’