राष्ट्रभक्ति की ठेकेदारी.....
कुरबानी के बदले जिनका, साठ दशक तक राज चला है।
चेलों के ही साथ इन्होंने, छप्पन भोग प्रसाद चखा है।।
देशभक्ति की मूँछ लगा कर, अपनी किस्मत को चमकाया।
राष्ट्रभक्ति की ठेकेदारी, को अपने ही नाम कराया।।
आशाओं के महल सजाकर, जनता का विश्वास छला है।
और गरीबों के सपनों को, आश्वासन से खूब भरा है।।
रामराज्य का लालच देकर, फिर रावण का वेष धरा है।
सोने का मृग रूप बदलकर, सीता का अपहरण किया है।।
जनता की अनदेखी का जब, खूब पैमाना छलका है।
सत्ता से तब दूर हटा कर, सही ठिकाने पटका है।।
सब बलिदानी बौने हो गये, इनका नेता बहुत बड़ा है।
यशगाथा को सुना-सुना के, इनके घर का दीप जला है।।
हम असली हैं वह नकली है, हम अच्छे थे आज बुरा है।
सत्ता की इस लोलुपता में, भ्रष्टाचारों का झगड़ा है।।
लूटपाट ही राजनीति का, सबसे सुखद बिछौना है।
पीढ़ी दर पीढ़ी ही इनको, राज महल में रहना है।।
लोकसभा और राजसभा में, राजनीति का रोना है।
जनादेश कुछ भी मिल जाये, इनके लिये खिलौना है।।
संख्या बल अब प्रजातंत्र का, कुटिल भरा समझौता है।
जनादेश को कौन मानता, पिन्जरे का वह तोता हैै।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’