सबके जीवन काल में.....
सबके जीवन काल में, दुख-दर्दों की धूप।
समय बड़ा बलवान है, कब बदले वह रूप।।
कभी दोस्त दुश्मन बने, है अजीब सा खेल।
कभी शत्रु भी दोस्त बन, करवाता है मेल।।
सुंदर और महेश सँग, तिकड़ी रहती साथ ।
सिद्धांतों की बात पर, छूट गये कब हाथ ।।
लाल-चौंतरा में सजे, प्रतिभाओं के रंग।
हिल-मिल जनता देखती, हँसी खुशी के संग।।
विविध कलायें सीखते, ऐसा अद्भुत मंच।
खेलकूद नाटक कला, में निकले थे टंच ।।
अनगढ़ पत्थर का रहा, खेल-कूद इतिहास।
पंडित जी को दे गया, एक नया अहसास।।
सपने में पत्थर दिखा, ईश्वर का प्रतिरूप ।
खुला मंच, मंदिर बना, हार चढ़े औ धूप ।।
पंडित जी के स्वप्न ने, किया अनोखा काम।
खेल कूद का मंच वह, हुआ धर्म के नाम।।
मंगल चंडी मठ बना, आस्था के अनुरूप ।
रोज सुबह औ शाम को, नमन करें वह रूप।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’