राजनीति में ताल ठोंकते.....
राजनीति में ताल ठोंकते, आज सभी अभिनेता हैं।
‘नेताजी’ अब कहाँ बचे हैं, दल-दल के ही नेता हैं।।
निज स्वार्थों में डूबे इतने, भ्रष्टाचार ही पला बढ़ा है।
हर विकास के पुल को इनने, रेत मिलाकर खूब गढ़ा है।।
कूटनीति की चैपड़ में तो, आज सभी शकुनी मामा है।
दलदल में सब धंसे हुये हैं, भीम सरीखे सब गामा हैं।।
सिंहासन धृतराष्ट्र हुआ है, दुर्योधन से मोह बढ़ा हैै।
दुष्ट दुशासन ताल ठोंकता, अन्यायों का दौर गढ़ा है।।
राजनीति में सजायाप्ता, सत्ता का सुख भोग रहा हैं।
डालडाल मैं पातपात की, आँख मिचैली खेल रहा हैं।।
बेटा बेटी माँ दामाद की, सत्ता में हिस्सेदारी है।
संकट मोचन घरवाली है, लोकतंत्र की बलिहारी है।।
अज्ञानी के घर आँगन में, ज्ञानी माथा टेक रहा है।
हाथों की कठपुतली बनकर,देश सम्पदा लूट रहा है।।
युवा कन्हैया भी बौराया, दुरयोधन भी साथ खड़ा है।
कौन बचाये द्रुपद आबरू, चीर हरण का शोर बढ़ा है।।
अभिमन्यु है घिरा युद्ध में, छल छद्मों को देख रहा है।
कौरव के इस चक्रव्यूह को, भेदन करने अड़ा हुआ है।।
दूर खड़ी जनता बेबस हो, आतुरता से देख रही है।
पथरीली कंटक राहों पर, सदियों से वह दौड़ रही है।।
आजादी जब इनसे पायें, तब नव युग का दौर चलेगा।
दुनिया के नक्शे में तब फिर, भारत का सम्मान बढ़ेगा।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’