चंदा सूरज कर रहे.....
चंदा सूरज कर रहे, जग में अपना काम ।
सदियों से वह रोशनी, फैलाते निष्काम ।।
दोनों ने ही प्रेम से, थाम रखी है बाँह।
रवि दे जाता है तपन, चंदा शीतल छाँह।।
पूरब पश्चिम दो दिशा, जिसका ओर न छोर ।
पूरब से सूरज सदा, फैलाता नित भोर ।।
पश्चिम में वह डूब कर, करता है विश्राम ।
नई ऊर्जा संग ले, आ जाता अविराम ।।
बिना थके करते अरुण, निष्ठा से सब काम।
कामचोर मानव हुआ, अब जग में बदनाम।।
वन उपवन गिरि कंदरा, झरने नदी पहार ।
नैसर्गिक सबको मिले,ये सुंदर उपहार ।।
शीतल पवन बिखेरती, बिना भेद औ भाव ।
प्राण वायु देती सदा, करती नहीं दुराव ।।
दिया प्रकृति ने सृष्टि को, बिना मूल्य उपहार ।
स्वार्थियों ने कर लिया, अपना ही अधिकार ।।
मानव ने गंदा किया, उसका निर्मल छोर ।
अब सब हैं पछता रहे, कैसी होगी भोर ।।
पछताने से कुछ नहीं, बिगड़ी बनती बात ।
अगर सभी जन ठान लें, इनको दे दें मात ।।
शुद्ध हवा औ स्वच्छता, खान पान बहिरंग ।
निर्मल जल सबको मिले, जीतें मिल कर जंग।।
अब मनुष्य का, प्रकृति से, हो पावन गँठजोड़।
संरक्षण मिल जुल करें, आपस में हो होड़।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’