सबई के दिल में राम बसत हैं.....(बुंदेली)
सबई के दिल में राम बसत हैं,
मन में रावण सोई रहत है।
जीनें जी से नेह बढ़ा लओ,
ऊ को दिल में राज चलत है।।
ऊँसई मन बौरात फिरत है,
इन्द्रियन खों उकसात फिरत है।
जीनें ऊपै गाड़ो झंडा,
नोंनों जीवन सोइ जियत हैं।।
संस्कार ऐसो बिरवा है,
ऊसें फल तो खूब मिलत है।
जीनें घर में रोप लओ है,
सबई दिलों में राज करत है।।
बचपन तो अनमोल रहत है,
कुम्भकार आकार गढ़त है।
जैंसो साँचन में तुम ढालो,
ऊँसई ऊ को रूप ढलत है।।
राम के संगे रिश्तो जुड़ है,
दुख पीड़ा सब दूर भगत हैं।
जब रावण की लंका जरने,
सच्चो सुख तो तबई मिलत है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’