प्रश्न करे मन बावरा.....
कविता संग की दोस्ती, थामा उसका हाथ ।
मुझसे जब भी रूठती, तब-तब हुआ अनाथ ।।
कविता मेरी मित्र है, कभी न छोड़े साथ ।
दुखते मन मलहम लगा,सदा बढ़ाती हाथ ।।
प्रश्न करे मन बावरा, लिखता जो दिन रात ।
कौन पढ़ेगा यह सभी, तेरे दिल की बात ।।
कुछ अपनेे ही कोसते, लख मेरा यह काज।
प्रतिपल समय गवाँ रहा, तुझे नहीं है लाज।।
तन की ताकत के लिये, पौष्टिक है आहार ।
मन होता बलवान यदि, जीवन में सुविचार ।।
कविता कभी न चाहती, मानवता पर घात ।
जिसमें जग का हित निहित, उसे सुहाती बात ।।
मिटे विषमता देश की, मानव मन का भेद ।
प्रगति राह में सब बढ़ें, व्यर्थ न हो श्रम-स्वेद ।।
जगे हृदय संवेदना, या बदले परिवेश ।
यही सोच कर लिख रहा, शायद बदले देश ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’