कवि की कल्पनाओं में.....
कवि की कल्पनाओं में, सभी रंगों का आदर है।
कभी बचपन की लोरी है, कभी यौवन की गागर है।।
कभी आता बुढ़ापा तब, बनी कविता सहारा है।
सदा दुख की घड़ी में कवि, बना करुणा का सागर है।।
भँवर में नाव जब फँसती, वही पतवार बनता है।
किनारे पर लगा कश्ती, खुशी जीवन में भरता है।।
दुखों में डूबा हो इंसान, तो हमदर्द है बनता ।
सुखोें की पोटली को, काँख में लेकर निकलता है।।
चिरंतर कवि हृदय ने ही, सुखों के पल सजाए हैं।
हमेशा आँसुओं की धार में, दुख भी बहाए हैं ।।
सही राहों पे चलने की, कलम ही प्रेरणा देती।
दिशाएँ दिग्भ्रमित करतीं, तो रस्ते भी दिखाए हैं।।
किनारे पर पथिक मन हार, कर जब बैठ जाता है।
दिलों में ऊर्जा भर कर, उमंगों को जगाता है।।
धरा से नाप लेता है कवि, आकाश की दूरी।
यही अंदाज, कवि का इस, जमाने को लुभाता है।।
वह भागीरथ तपस्या करके, गंगा को मनाता है।
जगत को तारने आकाश से, उसको बुलाता है।।
अगर मठ का पुजारी है, तो मस्जिद का भी शैदाई ।
वो गिरजाघर, गुरूद्वारे में, माथे को झुकाता है।।
हमेशा एकता के गीत, दुनिया को सुनाता है।
मिटाकर नफरतों को,प्यार से जीना सिखाता है।।
सभी का एक ईश्वर है, कवि सदियों से है कहता।
जगत कल्याण का ये मंत्र, दुनिया में गुँजाता है ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’