कसम गांधी की
राम नाथ शुक्ल 'श्री नाथ'
राम नाथ शुक्ल 'श्री नाथ'
उस दिन ! नगर में नहीं, समस्त देश में आन्दोलन छिड़ा था। सबके लहू में विद्रोह जाग्रत हो उठा था। गरज उठा था। परतन्त्र, शिथिल, पराभूत मानव फिर एक बार हुँकार भर कर खड़ा हो गया था।
उस दिन ! मुर्दाें में भी प्राण संचार हो उठे थे।
उस अनियंत्रित विद्रोह को देखकर साम्राज्यशाही का तख्ता हिल गया। शोषण वृत्ति थर थरा उठी। मृतप्राय युग ने फिर एक बार दहाड़ लगायी !
वह दहाड़ ! जिसमें कृषकों की बेबसी थी। दरिद्रता की चीत्कार और हाहाकर। सभी वर्गों का समवेत स्वर में उभरा था। वह दहाड़ सम्मिश्रित दहाड़ थी जिससे साम्राज्यवादी शासकों की नींद उड़ गयी थी, उनके लिए वह भयानक और प्रबल थी।
उस विद्रोह पर नियंत्रण रखना सत्ताधारियों के लिए बड़ा कठिन कार्य था।
नन्दू खेत से लौटा, उसके एक हाथ में हँसिया था दूसरे में तिरंगा! झोपडी के पास आकर जोर से चिल्ला उठा वह...“माँ”
नन्दू की ध्वनि में एक विद्रोह था। वृद्धा चाैंक उठी, वह बाहर आयी। नन्दू का रौद्र रूप देख कर दंग रह गयी वह।
“नन्दू यह क्या है ?”
“आज महासंग्राम मचेगा, माँ !”
बाहें फड़क उठीं !
“बेटा !”
आज मैं अपनी बहिन का बदला लूँगा। तू ही कहती थी न, जब मैं छोटा था, तब अंग्रजों ने बलात्कार कर मार डाला था उसे, आज मोका मिला है। आज मैं बदला लूँगा माँ।
वह क्रोध में उबल रहा था !
क्या कह रहा है ?
आँखें फाड़ कर रह गयी वृद्धा ! बिदा दे मुझे माँ....अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर संतोष की साँस लूँगा। ‘कसम गांधी जी की’ प्रलय मचा दूँगा आज।
“नहीं !” वृद्धा रो उठी !! उसका बूढ़ा हृदय तड़प उठा !! आँसू बह पड़े !!! टप टप !
“बहू ! बहू !!” चिल्लाकर पुकारा उसने !
भीतर से सिसकने की ध्वनि आयी बहू रो रही थी।
“अरे तू ही आकर रोक इसे, पगला गया है। गोलियों का सामना करने चला है। जवान औरत का क्या होगा सोचा हेै रे ?”
“कसम गांधी जी की, एक औरत क्या देश पर हजारों कुर्बान कर सकता हूँ । बिदा दे मुझे, खेत पर नौजवानों की टोली खड़ी है।”
नन्दू की हठ वृद्धा जानती थी। उसके शारीरिक बल और साहस पर सारे मोहल्ले को गर्व था। सैकड़ों कुश्तियाँ जीतीं थीं उसने अनगिनत पहलवानों के दाँत खट्टे किये थे। कुश्ती में उसके विरुद्ध कोई पल दो पल भी टिक न सकता था। ऐसे सपूत बेटा पर गर्व था वृद्धा को। पर उसकी यह अड़ी भयानक थी।
जिस बात पर अड़ जाता, पूरी कर के छोड़ता वृद्धा के आगे केवल एक मार्ग था और वह था रोने का। माँ के एक आँसू पर वह अपना खून बहाने को तत्पर रहता था। पर आज सैकड़ों आँसू बहाने पर भी वह निर्दय निष्ठुर बना खड़ा था।
वृद्धा ने रोकर, समझाने का अन्तिम उपक्रम किया।
“मान जा रे, क्या इसी दिन के लिए अपना दूध पिलाकर बड़ा किया था ?” अरे मैं तो चार दिन की मेहमान हूँ । मुझे छोड़ दे पर उस रधिया को देख उसका क्या होगा ?
“माँ” गरज पड़ा नंदू।
दिल मसोस कर रह गयी वृद्धा। आगे न कह सकी वह कुछ। हिचकियाँ बंध गयीं थीं।
नंदू आगे बढ़ा। पैर छुए। और झण्डा ऊँचा कर बढ़ गया हिरण सा उछलता।
और रधिया....? किसी भावी आशंका से काँप उठी। उसके प्राण छटपटा उठे, एक मर्मान्तक चीत्कार कर गिर पड़ी।
नंदू गांधी का अनन्य उपासक था। प्रयाग मे उनके दर्शन करने के उपरान्त वह उनका चिरभक्त बन गया था। देवता से भी अधिक मानता था। हर एक मनुष्य में एक न एक गुण होता है। अधिक भावुक होने पर वह गांधी जी की ही दुहाई देता और जो कहता उसका प्रतिपालन करता।
नंदू गरीब होते हुए भी ईमानदार था। अन्याय के विरोध में वह अपनी जान लड़ा देता। जीवन निर्वाह के लिए उसके पास कोई साधन था, तो केवल वह खेत था। जिस पर तीन प्राणियों की जिन्दगी निर्भर थी।
नंदू ने हाहाकार मचा दिया।
उसके बलिष्ठ शरीर ने सैकड़ों शोषक अंग्रेजों को मसल डाला। अनेकों को पैरों से कुचल डाला। उसके पराक्रम के समक्ष गोलियाँ भी काँप उठी।
प्रतिद्वन्द्वी तंग आ गये।
नंदू ने अपना वचन पूरा किया गांधी जी खाई सौगंध को निबाहा।
छाती में गोली लगने पर भी नंदू लड़ता रहा। अंतिम सांस तक लड़ता रहा। उसका भौतिक शरीर नष्ट हो गया, किन्तु क्या आत्मा की वह उज्जवल प्रतिभा नष्ट हो सकती है ?
कई साल बीत गये। देश स्वतंत्र हो गया था।
वृद्धा पुत्र वियोग में चल बसी थी किन्तु शहीद नंदू की रधिया आज भी जीवित है। वह अपनी ज्योति विहीन शून्य आँखें लिए दर दर भटकती रही। ठोकरें खाती, आज भी घूम रही है।
वह अपने पति की ओजस्वी गर्जना को कभी नहीं भुला सकी थी। देश उस महापुरुष की बरसी मनाने का आयोजन रचा जा रहा था। और वह रधिया जर्जर शरीर में फटे-चिथे, मैले कपड़ों को लपेटे, नाली के किनारे बैठी। अपने पति को स्मरण कर आँसू बहा रही थी। वह सोच रही थी कि नंदू ने अपनी कसम का पालन शरीर की आहुति देकर किया, किन्तु स्वाधीन देश के शासकों ने अपने वचनों का पालन किया ? ....
रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’