कितना खाया कितना लूटा.....
कितना खाया कितना लूटा,
किसकी कथा सुनायें ।
अपनी माँ के दर्द को यारो,
हम कैसे बतलायें ।।
क्या इन्हें शहीदों की कुर्बानी,
बिल्कुल याद ना आयी ।
जो चुपके - चुपके माता की,
इज्जत ही दांव लगायी ।।
राजनीति सीता जैसी थी,
उसे सूर्पनखा कर दी ।
चीर - हरण में दुःशासन की,
ऐसी - तैसी कर दी ।।
हर्षद , परमिट और हवाला,
चीनी, रिश्वत और घोटाला ।
सेन्टकिट्स, सुखराम, गुवाला,
धोखाधड़ी कमीशन काला ।।
टू जी, कामन वेल्थ, कोयला,
माईनिंग और रेत माफिया ।
सत्ता में घुस गये कालिया,
नहीं दिख रहा कोई कन्हैया ।।
पशुओं तक का छीन निवाला,
अरबों का करते घोटाला ।
कैसे देश का पिटा दिवाला,
क्या कर लेगा करने वाला ।।
घूमे पहन बैजन्ती माला,
कुर्सी की ही जपते माला ।
कब बदलेंगे अपना पाला,
चाहे जब कर लें मुँह काला ।।
अपने ही आँगन में देखो,
कितना जहर फैलाया ।
जात-पांत गुंडागर्दी का,
नंगा नाच नचाया ।।
भाषा-पानी, क्षेत्रवाद का,
कैसा पाठ पढ़ाया ।
एक देश के राज्यों को ही,
आपस में लड़वाया ।।
लोकपाल हो आई बी आई,
या आयोग या सी बी आई ।
साम, दाम और दंड के रस्ते,
रख दें सबको ठंडे बस्ते ।।
नित नूतन करते हथकंडे ,
कभी नहीं रहते ये मन्दे ।
भ्रष्टाचार के रूके न धंधे,
काले धन के हैं ये बन्दे ।।
माँ के फटे हुये आँचल को,
कहाँ - कहाँ सिलवायें ।
और लगे पैबन्दों को हम,
कैसे कहाँ छिपायें ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’