कलयुगी - रावण
गाँव की एक
भोली-भाली
युवती के मन में ,
विजया – दशमी
मनाने की चाह उमड़ी।
रात में वह अपने घर से,
दशहरा मैदान को
अकेले ही निकली ।
रास्ते में ही उसे
कुछ सदेह रावण मिल गए ।
जो सतयुगी रावण से
बहुत भारी पड़ गये ।
रावण को जलते हुये
देखने की चाह में
आज वह स्वयं ही
जिंदा जल रही थी ।
और एक नहीं ,
दस कलयुगी रावणों से
बुरी तरह घिर गयी थी ।
सदियों से चले आ रहे
इस पर्व के औचित्य पर
आज वह प्रश्न चिन्ह
लगा रही थी ।
और इस आधुनिक समाज से
न्याय की गुहार लगा रही थी ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’