मौन के मकान बन गये.....
मौन के मकान बन गये,
दिल के द्वार तंग हो गये ।
कहने को अनेकों लोग हैं,
फिर भी हम अकेले रह गये।
सोच कर चले थे हम कभी,
प्रेम की डगर में हम सभी ।
दिन गुजारेंगे हॅंसी –खुशी,
ना करेंगे रंजो -गम कभी ।
चाँद ने कहा था सोच मत,
चाँदनी को हम मनायेंगे ।
हर अमां की स्याह रात को,
गीतों की शमा जलायेंगे ।
खिड़कियाँ अनेकों थी मगर,
खोलकर न उनको रख सके।
मेहरूम रोशनी से हम हुये,
खुद कसूरवार हो गये ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’