मित्र मेरे मत रूलाओ.....
मित्र मेरे मत रूलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।
आँख से अब और आँसू, मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।
जिनको अब तक मानते थे, ये हमारे अपने हैं ।
इनके हाथों में हमारे, हर सुनहरे सपने हैं ।।
स्वराज की खातिर न जाने, कितनों ने जिंदगानी दी ।
गोलियाँ सीने में खाईं, फाँसी चढ़ कुरबानी दी ।।
कितनी श्रम बूदें बहाकर, निर्माण का सागर बनाया ।
कितनों ने मेघों की खातिर,सूर्य में हर तन तपाया ।।
धरती की सूखी परत ने, विश्वासों को चौंका दिया ।
कारवाँ वह बादलों का, सरहदों से मुड़ गया ।।
काँच के दर्पण -से सपने, टूट कर कुछ यों गिरे ।
पैरों में नस्तर चुभाते, खूँ से धरा को रंग गये ।।
मित्र मेरे मत रुलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।
आँखों से अब और आँसू , मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’