राह देखता रहा तुम्हारी.....
राह देखता रहा तुम्हारी, मैं निशि दिन प्रियतम ।
कब आँजोगी आँखों में, तुम काजल सा प्रियतम ।।
नयनों की परिभाषा पढ़कर, मैंने छंद गढे़ ।
सुर -सरगम के ताल मेल से, अनगिन बंध पढ़े ।।
मेरे कलम की स्याही बनकर, गीत लिखा करती थीं ।
हारों और मनुहारों के सँग, प्रेम रचा करती थीं ।।
मेरे गीतों और गजलों में, तुमने रूप सॅंवारा ।
प्रेम समर्पण के भावों का, दर्शन मुझे कराया ।।
चाँद - चाँदनी ने आमंत्रण, पत्र बहुत भेजे ।
बिन सॅंग तेरे रास ना आया, वापस ही भेजे ।।
मन के आँगन में यादों की, बिजुरी सी गिरती है ।
और रात नागिन सी, रह - रहकर डसती हैं ।।
कविता,गीत,गजल गढ़ने को, मन फिर से अकुलाता ।
प्रियतम तेरे निष्ठुर दिल में, प्रेम न क्या हुलसाता ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’