जेलों की सलाखों में.....
जेलों की सलाखों में, अब वो दम कहाँ ।
खा- म - खा उलझ रहे, क्यों कोतवाल से ।
जमाने का चलन बदला है, कुछ आज इस कदर ।
गुनाहों की ताज पोशियाँ हैं, बेगुनाह दरबदर ।
गलियों के अब कुत्ते भी, समझदार हो गये ।
झुंडों में निकलते हैं, वे सिपहसलार हो गये ।
शहरों में अब बंद का, है जोर चल पड़ा ।
गुंडों सँग नेताओं का ,भाई चारा बढ़ चला ।
कुछ सड़कें क्या बनीं, वे माला-माल हो गये ।
बस हल्की सी बरसात में ,फिर गड्ढे बन गये ।
नई सड़कें उधड़ जायें, तू फिक्र क्यों करे ।
थिगड़े लगाने का, फिर टेंडर हमें मिले ।
चोर और सिपाही का, अब खेल चल पड़ा ।
इस खेल में ही दोनों का, सितारा चमक उठा ।
शिकायत करना चाहो तो, कर दो आराम से ।
हम क्यों डरें किसी से, जब जमाना हराम से ।
चिल्लाते हो चिल्लाते रहो, हमें क्या पड़ी ।
जिलेवार जिलाधीशों की, न्युक्तियाँ कर रखीं ।
जाकर थमा के आना, शिकायतों का पुलंदा ।
मिल-जुल कर हम वसूलेंगे, हर काम का चंदा ।
इंक्वारी कहेंगे, इंक्वारी करवाएँगे ।
आयोग कहेंगे, आयोग बिठवाएँगे ।
जो आप कहेंगे, वो जांच करवाएँगे ।
निष्पक्षता की आड़ में, वर्षों लटकाएँगे ।
पक्के निशानातों को, हम सब मिटवाएँगे ।
आरोपी के दागों को, घिसकर धुलवाएँगे ।
परवाह नहीं कोष की, करोड़ों लुटवाएँगे ।
गांधी के सिपाही हैं, हम सच दिखाएँगे ।
लानत है मुझे दोस्त, अगर यह न कर सके ।
तो भूल कर भी हम कभी, रिश्वत न खाएँगे ।
वेतन की चाह किसे है, बस काम करेंगे ।
अपने वतन के वास्ते, कमीशन पर जियेंगे ।
महाराणा के वंशज हैं, हम इतिहास रचेंगे ।
चारा को ही खाकर, हम पेट भरेंगे ।
सत्ता से हटाया तो, बीवी को लायेंगे ।
बीवी को हटाया तो, बेटों को लायेंगे ।
हर हाल में हम जनता की, सेवा में रहेंगे ।
सत्ता में जियेंगे, और सत्ता में मरेंगे ।
तिरंगे को ओढ़कर, हम शमशान जायेंगे ।
तोपों की सलामी से ही, हम मुक्ति पायेंगे ।
हर चौक में भी मूर्तियाँ, अपनी ही लगवायेंगे ।
आदर्शों पर भी चलने की, फिर कस्में दुहरायेंगे ।
हर आतंकियों की जान की, सुरक्षा भी करेंगे ।
जेलों में उनके आराम की, व्यवस्था भी करेंगे ।
खर्च की परवाह नहीं, खूब करेंगे ।
जनता ने जिताया है, हम जनता को धरेंगे ।
अन्ना हो या रामदेव, सब समान हैं ।
हमारे लिये ये तो, दुश्मन समान हैं ।
हमसे जो टकराएँगे, बेमौत मरेंगे ।
कानूनी दाँव पेंचों में, उलझ कर के रहेंगे ।
जमाने का चलन बदला है, कुछ आज इस कदर ।
गुनाहों की ताज पोशियाँ हैं, बेगुनाह दर बदर ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’