श्री गोर्बाचोव
विश्व के शक्तिशाली
राष्ट्र के नेता
स्वाभिमान और
गर्व के प्रणेता
श्री गोर्बाचोव
पिछले दिनों अपने रूस से
सीधे भारत पधारे ।
हिन्दुस्थान के मंच पर बैठे ,
बड़े गर्व से मुस्कराए ।
किन्तु सत्ताधीशॉ से मिलकर
बुरी तरह अचकचाए ।
और अपनी अर्धागिनी की
व्यंग्य भरी मुस्कान को देख
फरमाये , प्रिये ...
मुझे माफ करना
मैंने तो भारत के
अतीत के इतिहास को
पढ़कर सोचा था ,
चलो आज तुम्हें
ऐसे देश से मिलवाएँगे
जहाँ से कभी
धर्म,सभ्यता और
संस्कृति की पताका
सारे विश्व में फहराई थी ।
यही सोच कर तो तुम्हें
धर्मगुरुओं के इस देश के
दर्शन करवाने लाया था ।
और मैं भी इस देश की
पवित्र गंगा से
बोल्गा का संगम
करवाने आया था ।
किन्तु प्रिये,
मैं तुम्हारी आँखों की
छिपी भाषा समझ रहा हूँ ।
मैं इनकी गुलामी को भी
भाँप रहा हूँ ।
तुम सही देख रही हो
यहाँ भाषाई धूलों के
उठते गुबारों को ।
जो अंधड़ बनने -कितने आतुर हैं ,
और इनकी एकता को
खण्डित करने
कितने व्याकुल हैं ।
प्रिये...
यदि सचमुच मुझे
यह मालूम होता ,
तो मैं स्वयं तो आता
किन्तु तुम्हें कभी न लाता ।
तुम्हें कभी ना लाता .....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’