कुल्हड़ संस्कृति
कुल्हड़ में
चाय पीने का मजा ही
कुछ और होता है,
चूँकि वह
अपनी ही माटी से
बना होता है ।
चाय की हर चुस्कियों में
अपनी माटी की
सौंधी-सौंधी खुशबू
जब बिखर जाती है,
तो अपने गाँव की
आर्थिक खुशहाली
लहलहाती नजर आती है ।
और मुन्ना कुम्हार के
उदास चेहरे में
मुस्कान बिखर जाती है ।
मेरे दोस्त , सचमुच
इस कुल्हड़ संस्कृति में
हमारे गांधी की
आत्मा बसती है ।
जो हमारे देश के
गाँवों की तरक्की का
इतिहास रचती है ।
इसलिए दोस्त ,
कुल्हड़ में
चाय पीने का
मजा ही कुछ और होता है ।
चूँकि वह अपने देश की
माटी से बना होता है ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’