आघातों-प्रतिघातों से कब.....
आघातों - प्रतिघातों से कब,
किसको क्या मिल पाया है ।
भीष्म पितामह सा योद्धा भी ,
सर – शैया पर अकुलाया है ।
वाणी की कर्कशता साथी ,
कभी ना मुझको भायी है ।
बचपन से मेरे दिल में यह,
जहर घोलती आयी है ।
प्रेम , शांति मुस्काते रहना ,
सदा यही बस भाया है ।
तन-मन-धन जीवन यह सारा,
इस पर सदा लुटाया है ।
ईर्ष्या , बैर , बुराई , नफरत ,
दीमक सा तन को खाती है ।
हर पल मन मर्माहत करके ,
काल- रात्रि ये बन जाती है ।
प्रियतम दिल में बसना चाहो,
सारी खुशियाँ दे दूंगा ।
आँचल में नभ, चाँद, सितारे,
ला - ला कर नित भर दूंगा ।
नेह प्रेम की खातिर अपना ,
सारा जीवन न्यौछावर है ।
बदले में यदि प्राण चाहिए ,
सहज भाव में अर्पित है ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’