तुलसी तेरे घर आँगन में.....
तुलसी तेरे घर आँगन में,
लगी - लगी मुरझाये ।
केक्टस् की चाहत में अब तो,
नागफनी मुस्काये ।
हर जन-मन में मचल रही है,
राम राज्य की अभिलाषा ।
राम कहाँ जन्मेगा युग में,
लगी हुई सबकी आशा ।
राजनीति के दल-दल में जो,
कमल सरीखा खिलता है ।
वह युग का मनमोहक प्यारा,
राज दुलारा बनता है ।
सोने की लंका ने जब -जब,
जन -मन को भरमाया है ।
तब - तब रावण सत्ता के,
सिंहासन पर चढ़ आया है ।
आदर्शों , मर्यादाओं की,
जो खींची लक्ष्मण रेखा ।
जब-जब पार किया इस जग ने,
संकट बढ़े सभी ने देखा ।
मिले राम को हनुमान तो,
सीता खोज सफल होगी ।
दानव वृत्ति अंत तब होगी,
सत्य न्याय की जय होगी ।
बुरे कर्म का बुरा नतीजा,
चाहे पंडित ज्ञानी हो ।
सत्य धर्म ही अमर रहेगा,
चाहे क्यों न दशानन हो ।
नेह बड़ा होता है जग में,
प्रेम का कोई मोल नहीं ।
सबरी के जूठे बेरों से,
बढ़ कर कोई और नहीं ।
ऊॅंच - नीच की दीवारों को,
हमने ही तो बनाया है ।
उसने तो बस हाड़ मांस का,
मानव एक बनाया है ।
राम, लक्ष्मण , भरत, शत्रुघ्न ,
जैसे शिष्य रहेंगे ।
द्रोणाचार्य,बशिष्ठ आदि सब,
युग - युग पुजते रहेंगे ।
पत्नी मिले उर्मिला सरीखी,
लक्ष्मण कर्तव्य निबाहेगा ।
संयम त्याग बंधुत्व प्रेम का,
ध्वजा सदा लहराएगा ।
मर्यादित, अनुशासित जीवन,
सफल राष्ट्र की कुँजी है ।
प्रगति एकता शांति सुखों की,
सुदृढ़ शक्ति युत पूँजी है ।
हित चिंतक राजा जब होगा,
प्रजा साँस सुख की लेगी ।
स्वार्थ मोह में लिप्त रहा तो,
प्रजा दुखों को झेलेगी ।
तुलसी ने जो ज्ञान दिया है,
मंदिर मे ही सजा आये ।
सोने की लंका में फिर से,
अपने को भरमा आये ।
तुलसी तेरे घर आँगन में,
लगी - लगी मुरझाये ।
केक्ट्स की चाहत में,
अब तो नागफनी मुस्काये ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’