बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम.....
बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम ।
जाने कब आओगे, मेरे घनश्याम ।।
आँखें निहारती हैं, रोज सुबह- शाम ।
उमस भरी गर्मी से, हो गए बदनाम ।।
सूरज की गर्मी से, तपते मकान ।
बैरन दुपहरिया ने, हर लीन्हें प्रान ।।
लू के थपेड़ों से, हो गए हैरान ।
सूने से गली कूचे, हो गए शमशान ।।
श्रम का सिपाही भी, कहे हाय राम ।
हर घर में मचा है, भारी कोहराम ।।
नदियाँ सब सूख कर, बन गयीं मैदान ।
हरे भरे वृक्षों ने, खो दी पहचान ।।
ताल भी बेताल से, प्रश्न करे मौन ।
मेरे इन घावों को, भरेगा अब कौन ।।
जंगल अकुलाते सब, पक्षी हैं मौन ।
उनकी व्यथाओं को, समझेगा कौन ।।
आँखों में आस लिये, बैठा किसान ।
मेघों के पानी में, छिपा है विहान ।।
पाती मैं बंद करूँ, लिखना क्या शेष ।
निर्मोही प्रियतम कब, हरोगे ये क्लेष ।।
पाती मैं भेज रही, लिख कर संदेश ।
पाते ही आ जाओ, तुम अपने देश ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’