स्मृतियाँ कैद हुईं, चित्रों में मौन.....
स्मृतियाँ कैद हुईं, चित्रों में मौन ,
धुँधआई यादों में, माटी की सौंध ।
आमों के झुरमुट से, कोयल की कूक ,
जग आई प्रियतम से, मिलने की हूक ।
प्यासी रहट की वह, अनबुझ सी प्यास ,
छाया हो मौसम में, जैसे मधुमास ।
कुंज-कुंज गली-गली, झूमती बयार ,
बौराए मौसम सँग, करती मनुहार ।
खेतों में हरियाली, दिखती अपार ,
मेंढ़ें भी सज-धज कर, करती शृंगार ।
स्वर्णिम सी देह लिये, झूमे हर डाल,
शर्मीली लगती है, गेंहूँ की बाल ।
श्रम का पसीना और, खेतों पे काम,
बैलों को हाँकती वह, खलिहानी शाम ।
प्रेम भरे बंधन का, अनुपम संसार ,
डोली ले आया हो, दुल्हन कहार ।
गाँवों में मौसम की, मदमाती शान ,
वंशी सँग गूँजती है, वीणा की तान ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’