चाँद आज आसमां में.....
चाँद आज आसमां में, शोखियाँ दिखा रहा ,
चाँदनी के साथ - साथ, प्रेम गीत गा रहा ।
समीर संग रोशनी का, मस्त नृत्य चल रहा,
संगीत का प्रत्येक वाद्य, -वादियों में बज रहा ।
तूलिका ने रंग सब, छिटक दिए इधर- उधर,
प्रकृति को निहार कर, नेत्र हो गए अमर ।
बाहुपाश कल्पना से, प्रेमी मन बहक रहा,
गीत और संगीत से, उदास दिल बहल रहा ।
आँखों में विनोद सा, परिहास -हास दिख रहा ,
नयनों की कोरों से, चितवन चकोर विहॅंस रहा ।
सांसों में फिर नेह का, विश्वास सा है जग रहा ,
तन के कोने- कोने में, मधुमास है समा रहा ।
तन्हाईयों में यादों का, फिर गुदगुदाना चल रहा ,
मन का मोर नाच-नाच,सपनों सा है छल रहा ।
प्यार का अगाध सिंधु़, -ज्वार सा उछल रहा ,
आज सीमा लांघने को, मन भी है मचल रहा ।
इन्द्रियाँ दशों –दिशाएँ, तृप्ति को ललक रहीं,
प्यार की प्रखर तरंग, स्पर्श को मचल रही ।
पूर्णिमा दमक उठी, चमक उठी है यह धरा,
चंद्रमा की चाँदनी से, सज गयी वसुन्धरा ।
वैरागी का विरक्त मन, डोलता सा दिख रहा,
विरह की आग ताप से, ज्वाल बन धधक रहा ।
प्रीत की धरा में मीत, प्रेम गीत गा रहा,
साधना की शक्ति से, आसक्ति को जगा रहा ।
कालिमा को काट कर, उजियारे को फैला रहा,
प्रकाश का संदेश सारे, जग को देता जा रहा ।
बिखेर कर सोलह कलाएँ, चन्द्रमा मुस्करा रहा ,
अमरत्व का वह पान सारे, विश्व को करा रहा ।
चाँद आज आसमां में , शोखियाँ दिखा रहा ,
चांदनी के साथ-साथ प्रेम गीत गा रहा ...... ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’