बहुत हो गया बंद करो ये.....
बहुत हो गया बंद करो ये, अपना गोरख धंधा ।
राष्ट्रप्रेम का ढोंग रचाकर, डाल रहे क्यों फंदा ।।
जाति- पाँत की रेखा खींची, बिगुल बजाया भाषायी ।
बेशरमी की बाड़ लगा कर, कर ली खूब कमायी ।।
नेत्रहीन सिंहासन बैठे, आँखों को बनवास दिया ।
भारत को कुरूक्षेत्र बना के, योद्धाओं का नाश किया ।।
आरक्षण के चक्रव्यूह में, अभिमन्यु को फॅंसवाया ।
तुष्टिकरण की राजनीति से, इक दूजे को लड़वाया ।।
शकुनी की चालों में अब भी, पाँचो पाँडव फँसे हुये हैं ।
कौरव के इस सभा भवन में, वही द्रौपदी डरी हुयी है ।।
चीर हरण का द्रश्य सामने, लगता है फिर से होगा ।
कृष्ण नहीं दिखता है कोई, ना जाने अब क्या होगा ।।
जरासंध भी ताल ठोंक कर, युद्ध चुनौती देता है ।
दूर खड़ा दुर्योधन देखो, मन ही मन में हॅंसता है ।।
दफन करा दी मर्यादायें, राम राज्य के आँगन में ।
हरी - भरी तुलसी मुरझा दी, घर बाहर चौबारों में ।।
साहस, बल और बुद्धि-चेतना, आहत सी निर्जीव पड़ी है ।
अकर्मण्य, आलस्य, उदासी, सुरसा सी मॅुंह बाए खड़ी है ।।
ऐसे ही यदि देश चला तो, कब तक यह चल पायेगा ।
आशाओं का उगता सूरज, अस्ताचल को जायेगा ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’