मेघ मल्हार
दौड़ती हुई ट्रेन से
निहार रहा हूँ - मैं,
सावन की तेज
फुहारों के बीच
बरसते हुए बादलों को ।
जो धरती की प्यास
बुझाने आतुर हैं ।
बाहर देख रहा हूँ,
दौड़ते हुए नगरों गाँवों
गलियों,चैराहों
नदियों,मैदानों
जंगलों और पहाड़ों को
जो ब्यूटी पार्लर से निकले
नव जवानों की तरह
मस्ती में झूमते
नजर आ रहे हैं।
आम, जामुन,
और नीम के वृक्षों ने
मानो अभी-अभी
कंघी करके
अपना रूप सॅंवारा हो ।
बबूल के असंख्य झाड़
किसी हिप्पियों की तरह
डांस करते
नजर आ रहे हैं।
बरगद और पीपल के
विशालकाय वृक्ष
साधु-सन्यासीयों जैसे
धूनी रमाए
दिखाई दे रहे हैं ।
वह गुलमोहर का झाड़
मानों इशारों से
आने वाली हरियाली के
किस्से सुना रहा है ।
आकाश में दौड़ते मेघ
कड़कड़ाती बिजली के संग
सुर में सुर मिलाकर
मेघ मल्हार का राग
अलाप रहे हैं ।
और सभी को बरबस
अपनी ओर लुभा रहे हैं ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’